अस्थमा के मरीजों में श्वांस नलियों में सिकुड़न एवं सूजन के कारण हवा के आने-जाने का रास्ता अत्यधिक कम होता है एवं इसमें भी बलगम भरा होता है| ऐसी श्वांस नलियों पर ट्रिगर्स का प्रभाव जल्दी एवं बहुत अधिक होता है |
जिससे मरीज को खांसी उठती है, एवं श्वांस लेने में मुश्किल हो सकती है | एवं अस्थमा के दौरे पड़ जाते हैं जो कभी कभी बहुत खतरनाक हो सकते हैं
लम्बे समय तक इलाज के आभाव में अस्थमा के अनियंत्रित रहने से मरीजों श्वांस नलियों बनावट स्थाई रूप से बदल जाती है जिससे फेफड़ो की क्षमता हमेशा-हमेशा के लिए कम हो सकती है एवं दवाइयों का असर भी कम हो जाता है एवं बच्चो का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है एवं पढाई में मन नहीं लगता है |
कंट्रोलर द्वारा श्वांस नली की सूजन को कम किया जाता है और यह दवा दौरों से बचने मैं मदद करती है | अगर आपका डॉक्टर कंट्रोलर की सलाह देता है तो उसे तुरंत शुरू करें और हर रोज लें | (तब भी जब आपको खांसी और साँस लेने में परेशानी न हो |) अगर सूजन का इलाज न किया गया तो यह ज्यादा बिगड़ कर फेफड़ो को हमेशा के लिए बर्बाद कर सकती है |
सिकड़ी हुई हवा नलियों को खोलकर खांसी और विजिंग से राहत दिलाता है| आपको रिलीवर तभी लेना चाहिए जब खांसी और साँस लेने में तकलीफ हो
इन्हेलर से दवा सीधे तकलीफ की जगह तक पहुँचती है जहाँ इसकी जरूरत है (श्वांस की नलियों में) जैसे : ऑइंटमेंट सीधे त्वचा पर (त्वचा के रोगो के लिए), आईड्रॉप्स सीधे आँखों में (आँखों के रोगो के लिए)
बार बार खांसी होना
सांस लेने मैं कठिनाई होना
रोने हसने पर खांसी उठना
भागने दौड़ने खेलने कूदने पर खांसी उठना
सांस लेने मैं सीटी जैसी आवाज आना या घरघराहट होना
सीने मैं दर्द होना 80% अस्थमा का कारण एलर्जी होती है इस कारण सबसे पहले स्पाइरोमेट्री टेस्ट के द्वारा यह पता लगाया जाता है की फेफड़ो मैं कितनी समस्या है उसके बाद एलर्जी टेस्टिंग द्वारा एलर्जी के कारण का पता लगाया जाता है व इम्यूनोथेरपी द्वारा अस्थमा का परमानेंट इलाज किया जाता है
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